मच्छिंद्र बापू भिसे 9730491952 / 9545840063

'छात्र मेरे ईश्वर, ज्ञान मेरी पुष्पमाला, अर्पण हो छात्र के अंतरमन में, यही हो जीवन का खेल निराला'- मच्छिंद्र बापू भिसे,भिरडाचीवाडी, पो. भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा ४१५५१५ : 9730491952 : 9545840063 - "आपका सहृदय स्वागत हैं।"

हाइकु : ईमान बनाम बेईमानी


           मनुष्य जीवन बहुत सुंदर हैं। जब तक उसके जीवन में सच्चाई, ईमानदारी, परिश्रमी वृत्ति, लगन, परदुख कातरता, मनन, आत्मनिर्भरता आदि गुण जब तक हैं, तब तक उसका जीवन खिले फूल की तरह खुशबू बिखरेगा। मनुष्य हमेशा ऐसा ही जीवन चाहेगा परंतु हर पल आपके मनचाहा समय नहीं आएगा। जीवन में कमी और अधिकता हमेशा सताएगी। ऐसे अवसर पर मनुष्य अपना आपा खो बैठ जाता हैं और गलत रास्ता इख्तियार कर लेता हैं। अपने जीवन का बंटाधार स्वयं अपने हाथों से कर लेता हैं। मनुष्य गुणों में ऐसे ही दो गुण हैं 'सच्चाई और ईमानदारी।' जब तक आपके साथ हैं आपको ऊँची कगार पर रखेगी और एक बार आप फिसल गए तो समुंदर की गहरी खाई में गिर पड़ेंगे, जहाँ से अपने आपको फिर पहले जैसा तैयार करना बहुत मुश्किल हैं।
                यदि मनुष्य के ऊपर बेईमानी और अविचार हावी हो जाता है, तो उसकी अच्छाई के सभी गुण लाचार हो जाते हैं। परंतु मनुष्य अपने अच्छे गुणों से बुराई पर जीत हासिल कर ही लेता हैं। यही बात आपके सामने हिंदी की प्रसिद्ध विधा हाइकु के माध्यम से रखने की कोशिश कर रहा हूँ। आशा हैं आपको पसंद आएगी।
हाइकु : ईमान बनाम बेईमानी 
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भ्रष्ट आचार,
मरें सच्चाई और,
सत्य विचार। 
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सत्य विचार,
सच्चाई औ' अच्छाई 
मारे विकार। 
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हो बेईमान,
क्या कमा पाएँगे वे,
मान-सम्मान ? 
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मान सम्मान,
वे ही कमा पाएंगे,
बने इंसान।  
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ईमानी हवा,
बेईमानी सामने,
माँगती दुवाँ। 
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माँगू मैं दुवाँ,
बेईमानी की हार,
हो निर्विकार।  
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ईमान देखे,
खुले आम बाजार,
खुल्ले में बीके।  
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बाजार बंद,
बेईमानी को आज,
सच्चाई गंध। 
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पाता लाचारी,
जब ईमान बनें,
भ्रष्ट विचारी। 
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एकता बल ,
देख बुराई काँपे,
मिलें संबल। 

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झूठे हैं सब,
बेईमानी को देख,
झूके हैं रब। 
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ईश  हो मन,
न रब झुके ऐसा,
बहे पवन। 
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शिष्ट ईमान,
दबोच हैं ज़माने,
धन कमाने। 
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धन है मिटटी,
बिना सच्चाई पाए,
वक्त बताए। 
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ले बेईमानी,
वे मस्त-अलमस्त,
करें नादानी। 
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नादानी मन,
सच्चाई देख-देख,
पिघले तन। 
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ईमान जागे,
बेईमानी झपटी,
नौंचते भागे। 
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सच सुचाल,
देख के बेईमानी 
करें बवाल  
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ईमानी दिल,
भ्रष्ट्राचार के आगे,
कभी न खिल। 
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बनें निडर,
सच्चाई हो साथ में 
काहें का डर। 
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ईमान डरा,
बेईमान सामने,
मन भी हारा। 
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हारें क्यों मन,
जलाएँ बेईमानी,
ब्रह्म है तन। 
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इमानें रोटी,
बेईमानी के रास्ते,
मुँह से छूटी। 
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ईमान पले,
मनुष्य निवास की,
बुराई जले। 
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मुँह से नहीं,
एक न होगी बात,
न ही सौगात। 
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ईमान साथ,
अनगिनत काँटे,
देते सौगात।   

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हाइकु रचनाकार 
नवकवि 
श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे 

उपशिक्षक 
ज्ञानदीप इंग्लिश मेडियम स्कूल, पसरणी। 
भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज, तह.वाई,
जिला-सातारा ४१५ ५१५ (महाराष्ट्र)
चलित : ९७३०४९१९५२ / ९५४५८४००६३

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