मच्छिंद्र बापू भिसे 9730491952 / 9545840063

'छात्र मेरे ईश्वर, ज्ञान मेरी पुष्पमाला, अर्पण हो छात्र के अंतरमन में, यही हो जीवन का खेल निराला'- मच्छिंद्र बापू भिसे,भिरडाचीवाडी, पो. भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा ४१५५१५ : 9730491952 : 9545840063 - "आपका सहृदय स्वागत हैं।"

■ दीप जले थे ■ (कविता) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'


 ■ दीप जले थे 

(कविता)

कभी सोचा न था मैंने
एक दिन ऐसा भी आएगा,
आहत होगी माटी मेरी
नदियों में लहू बह जाएगा।

वे मनहूस दिन
लहू की खेल रहे थे होली
रणबाँकुरे भारत माँ के
सीने पर झेल रहे थे गोली
देखे मैंने छलनी होते कितने ही तन
बिखर पड़े थे न जाने कितने ही बदन।

पर सच कहूँ ...
हर सूरमा जी-जान से लड़ा था
दुश्मन भी देख इनका रूद्रतांडव
अंतस्थ लड़खड़ा था
बुलंद हौसले और शहीदी पर उनके
उन दिनों हिंदुस्थानी दिल सिहर उठा था।

ले शपथ मातृभूमि और शहीदों की  
सौ जाने लुटाने हर सूरमा निकले थे
वे भी क्या खूब लढ़े
नजरें मिला दुश्मनों से जा भिड़े थे
दो माह के इस युद्ध में
हिंदुस्थानी वीर जीत का तिरंगा गाड़े थे।

जीत की ख़ुशी में आहत सारा हिन्दुस्थान
२६ जुलाई ’९९ को दिवाली मना रहा था
बहता घाटी का खून
तेल बनकर जगमगा रहा था
परिजन-स्नेहियों की आँखों से
पवित्र धारा बन बह रहा था।

दिन बितते गए खून के धब्बे धुल गए
पर मेरे मन के दाग और गर्द हो गए
कैसे भूल सकती हूँ मैं सूरमाओं को
जो रक्षा में उन दिनों गोद मेरी सो गए
आज जब घाटी में सैनिक को देखती हूँ
उन सूरमाओं की छवि को निहारती हूँ।

पर मन दहल उठता है
किसी और शहीदी को सूना करती हूँ  
मैं हूँ कारगिल की घाटी
सूरमाओं को शत-शत वंदन करती हूँ।
-०-
26 जुलाई 2020
रचनाकार:  मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©® 
संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका,  सातारा (महाराष्ट्र)

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● मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'  
संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका
भिरडाचीवाडी, डाक- भुईंज,  
तहसील- वाई, जिला- सातारा महाराष्ट्र
पिन- 415 515
मोबाइल: 9730491952
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
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■ गुरु स्मरण-वंदन ■ (कविता) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'


■ गुरु स्मरण-वंदन 

(कविता)

वंदे आद्य गुरु माता- पिता नमन
होवे सार्थक-सफल सौ-सौ जनम!

गुरु बुने आपके सद्चरित्र जीवन
हित आपके करे नित नव सृजन!

गुरु सानिध्य जीवन जो अपावन 
विकार परिमार्जन करें गुरुजन!

गुरु है आपके आप ही गुरु मन
शिष्य भविष्य माहीं करें चिंतन! 

गुरु को आप कहिए मेरे सकल जन
मंगल से सुमंगल होवे आप ही मन!

नित खड़े होवे कैक अमंगल घन,
स्मरण करें गुरु के मिटे तम सघन!

गुरु न होता न्यारा करें अनेक भ्रमण,
जब भी भटके राह आइए गुरु शरण!

गुरु चरण के नित होवे स्मरण-वंदन,
मोह भरे संसार से होवे मुक्त-बंधन!

आत्म से आचरण करें गुरु सीखावन,
'मंजीते' सकल मन होवे संत-गुणीजन!
-०-
13 जुलाई 2022
रचनाकार:  मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©® 
संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका,  सातारा (महाराष्ट्र)

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■ देशवासियों के नाम हिंदी की पाती ■

  ■ देशवासियों के नाम हिंदी की पाती  ■ (पत्रलेखन) मेरे देशवासियों, सभी का अभिनंदन! सभी को अभिवादन!       आप सभी को मैं-  तू, तुम या आप कहूँ?...

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