मच्छिंद्र बापू भिसे 9730491952 / 9545840063

'छात्र मेरे ईश्वर, ज्ञान मेरी पुष्पमाला, अर्पण हो छात्र के अंतरमन में, यही हो जीवन का खेल निराला'- मच्छिंद्र बापू भिसे,भिरडाचीवाडी, पो. भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा ४१५५१५ : 9730491952 : 9545840063 - "आपका सहृदय स्वागत हैं।"

■ माँ शारदे! ■ (प्रार्थना) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'

■ माँ शारदे! 

(प्रार्थना)

माँ शारदे ! माँ शारदे!
इस जहाँ को तेरे ज्ञान का 
प्रकाश दे! 
माँ शारदे ! माँ शारदे!

कितना सुंदर यह जहाँ पर टूट रहा
मानव मन मनुजता से फूट रहा 
तू आकर ममदया से टूटा 
अनुबंध बाँध दे!
माँ शारदे...

कुदरत का मानव अनुपम उपहार रहा
पर प्रकृति का क्यों बन काल रहा
तू आकर त्रयनेत्र से निज 
सन्मति तेज दे!
माँ शारदे!... 

अंधकार में आज मनुज फिसल रहा
दिक्-दिगंत राहों पर भटक रहा
तू ममतामयी करुणा से सबकी 
उँगली थाम दे! 
माँ शारदे!...
-०-
06 अक्तूबर 2021
रचनाकार:  मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©® 
संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका,  सातारा (महाराष्ट्र)

संपर्क पता
● मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'  
संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका
भिरडाचीवाडी, डाक- भुईंज,  
तहसील- वाई, जिला- सातारा महाराष्ट्र
पिन- 415 515
मोबाइल: 9730491952
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
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■ उठने का शौक ■ (कविता) - मच्छिंद्र बापू भिसे

■ उठने का शौक ■

(कविता)

ऊँचा उठने का
अजीब शौक रखते हैं हम
चाहे जितनी बार गिराते रहो तुम, 
जमीन पर कदम गढ़ाए रखेंगे हम।

कदम, दर कदम
लड़खड़ाएँगे पर न रूकेंगे 
घुंगरू पहने हैं कदमों ने मेरे, 
बजते रहेंगे वे और नाचते रहेंगे हम।

ठोकरें भी मिलीं
तो कभी काँटे लगाए गले
लगी आग सीने में तो पानी से भी जलें
फिर भी हिम्मती राह फूल बिछाते रहेंगे हम।

टिमटिमाते जुगनू आए
मंजिलें राह दिखाते भी रहे
बढ़ने का हौसला जब दुगना हुआ
तीर चुभते रहें मंजीतें, राह न भटके हम।
-०-
26 सितंबर 2021
रचनाकार:  मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©® 
संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका,  सातारा (महाराष्ट्र)






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■ भारतीयता की गंध ■ (कविता) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'

 भारतीयता की गंध

(कविता)

हम सब इस देश के वासी
एक गीत के छंद हैं
अलग-थलग खिलते मगर
सबमें एकता गंध है।

जाति-धरम नाम है दूजे
क्या ला सके मन में रंज है
वर्ण भेद बस इंद्रधनुष में
समता के खिलें यहाँ रंग है।

कोई खाए चावल रोटी
कोई खाए चूरमा बाटी
पकवान चाहे हो एक-दूजे
मिल-बाँट खाते आनंद है।

ईद आए या दिवाली
भरते सबमें उमंग है
प्यार से गले मिलें यहाँ
तिरंगे उमड़ती तरंग है।

बाणी की तो क्या बात कहना
हर प्रांत का है अपना गहना
हिंदी सबका मेल कराती
सबसे रखती अनुबंध है।

छोड़ो मन की आनाकानी
चलो बुनाए नई कहानी
मानवता के बनें पुजारी
यही सबको सौगंध है।
-०-
04 सितंबर 2021
रचनाकार:  मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©® 
संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका,  सातारा (महाराष्ट्र)


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धागा-धागा (सजल) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'

 धागा-धागा

(सजल)

हर धड़कन बेहाल यहाँ
मिलतीं साँसे बेहाल यहाँ।

सूरज नित उगता तो है
रोटी का चाँद बेहाल यहाँ।

राहें निकलीं घुप्प अँधेरी
मंजिल को छूना बेहाल यहाँ।

मुस्कान लिए चलते सभी
हँसी-गुलाल बेहाल यहाँ।

झूठी ताली शोर मचाती
सच्चाई झोली बेहाल यहाँ।

चाटुकारी विलासिता भोगे
मेहनती पसीना बेहाल यहाँ।

जबानी वादे करते सभी
निभाए भी तो बेहाल यहाँ।

आना-जाना लगा है रेला
जीने की उम्र बेहाल यहाँ।

रिश्तों से लिपटा सदा रहा
धागा-धागा 'मंजीते' बेहाल यहाँ।
-०-
03 अक्तूबर 2021
रचनाकार:  मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©® 
संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका,  सातारा (महाराष्ट्र)




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तुम क्या जानोगे (सजल) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'

तुम क्या जानोगे

(सजल)

खंडहरों में जीने का गम, तुम क्या जानोगे,
पूरब हूँ मैं, सूर्यास्त के बाद दिल की तड़प तुम क्या जानोगे?

अक्सर आपबीती पर, सभी मशवरे देते तो हैं,
मेरे दिल की बुझी चिंगारी का,भड़कना तुम क्या जानोगे?

कितने ही जुगनू लौ पर, जान अपनी लुटा देते‌ तो हैं,
दिल से निकली दर्द-दुआँ, बेजुबान दीपक तुम क्या जानोगे?

अँधेरा छाए शाम पर, सभी दीपक जला देते तो हैं,
दर्द से दिल हर पल बूझा, तीली जलाना तुम क्या जानोगे?

दुआँओं की कसमें यहाँ, हर किसी को देते तो हैं,
टूटा ही देखा उन्हें  हमेशा, खुद मिटना तुम क्या जानोगे?

मिटे कोई हस्ती, दफ़न करते या जला देते तो हैं,
तन मिट ही गया, यारो! यादों का सजाना तुम क्या जानोगे?

अपना हो या पराया, ‘मंजीतें' साथ निभा देते तो हैं,
कंधा देने होंगे सभी, अकेले जाने का दर्द तुम क्या जानोगे?
-०-

लेखन तिथि: १३ अगस्त २०२१

रचनाकार:  मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©® संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका,  सातारा (महाराष्ट्र)

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■ देशवासियों के नाम हिंदी की पाती ■

  ■ देशवासियों के नाम हिंदी की पाती  ■ (पत्रलेखन) मेरे देशवासियों, सभी का अभिनंदन! सभी को अभिवादन!       आप सभी को मैं-  तू, तुम या आप कहूँ?...

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