मच्छिंद्र बापू भिसे 9730491952 / 9545840063

'छात्र मेरे ईश्वर, ज्ञान मेरी पुष्पमाला, अर्पण हो छात्र के अंतरमन में, यही हो जीवन का खेल निराला'- मच्छिंद्र बापू भिसे,भिरडाचीवाडी, पो. भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा ४१५५१५ : 9730491952 : 9545840063 - "आपका सहृदय स्वागत हैं।"

●हमारी जिम्मेदारी: संस्कारों का बीजारोपण● (आलेख) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'


●हमारी जिम्मेदारी: संस्कारों का बीजारोपण● 

(आलेख)

      हर माता-पिता चाहेंगे कि अपने बच्चे उच्च संस्कारी, उच्च शिक्षित और जीवन में कामयाब बनें। यहाँ सिर्फ चाहा जाता है; पर उसके लिए अपनी जिम्मेदारी निभाने में चूक करते हैं। कुछ तो अभिभावक बताते हैं कि हम उन्हें किसी प्रकार की कमी महसूस ही नहीं होने देते; परंतु समझने की बात है कि सुविधाओं का प्रबंध ही जिम्मेदारी नहीं होती उसकी प्रासंगिकता से बच्चों को अवगत कराना पूरी जिम्मेदारी निभाना है।
       बच्चों को सफलता तक पहुँचाने में माता-पिता की अहम भूमिका है, जो निभाई नहीं जाती। यूँ समझिए कि उन्हें अपनी सही जिम्मेदारी का अहसास ही नहीं है और जिन्हें है वे अभिभावक उँगलियों पर गिनने भर ही है। एक ऐसा भी समुदाय है जो अपनी जिंदगी की भागदौड़ में अपने बच्चों के जिंदगी की गाड़ी को ब्रेक फेल कराते हैं, जो आगे बढ़ने में असमर्थ और दिशाहीन हो जाती है।
       आदरणीय अभिभावको! अपने बच्चों की जिंदगी उजाड़ने के पाप के भागीदार न बनो; नहीं तो ये ही बच्चे बड़े होने पर आपको कोसते और दुत्कारते रहेंगे। यहाँ तक कि हर असफलता के लिए आपको कसूरवार ठहराते रहेंगे। फिर आप कुछ नहीं कर पाएँगे और ढलती उम्र में अपने किए पर पछतावा करने के अलावा कुछ नहीं बचेगा। अभी वक्त है, वक्त की नजाकत को समझे और बच्चों में अच्छे संस्कारों का बीजारोपण करिए। यह संस्कारबीज बालकों के प्रथम अठारह वर्ष की उम्र तक ही बोए जा सकते हैं, बाद में सिर्फ परिणाम ही देखते रहना है। 
       विनम्रता सभी संस्कारों की नींव है। हमें सबसे पहले यहाँ काम करने की आवश्यकता है। परिवार ही बच्चों की प्रथम पाठशाला होती है, जहाँ बड़ों का अनुकरण करते  हुए सिखा जाता है। बालक विनम्रता का पाठ परिवार के सदस्यों के अनुकरण से सीखता है। अब यहाँ हमें देखना होगा कि बड़ों में कितनी विनम्रता है। हमारी बातचीत और व्यवहार से हमारी विनम्रता व्यक्त होती है। हम एक-दूसरे के साथ आयु के अनुसार आदर और संयम से बातचीत करते रहे। पारिवारिक व्यवहार में सच्चाई, आत्मीयता, स्नेह और स्पष्टता लाने की आवश्यकता है, जिसका अनुकरण करके बच्चे अपने जीवन में अपनाएँगे। बच्चो में विनम्रता लाने से पहले परिवार के हर सदस्य में होनी चाहिए। फिर बच्चों में अपने-आप आ जाएगी। यहाँ चिंतन करने की आवश्यकता है। क्या आप अपने बच्चों को अपनी विनम्रता का अनुकरण-अनुसरण करने का सुअवसर दे रहे हैं? यदि नहीं तो फिर अपने बच्चों से विनम्रता की उम्मीद रखना मूर्खता है। 
       हमारे बच्चे आत्मनिर्भर बनें, ऐसा हरेक पालक चाहता है; लेकिन क्या आपने उसे आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाया है! उनका पाठशाला का बस्ता भरना, कपड़े पहनना-उतारना, बिस्तर लगाना-निकालना, अपने भोजन की थाली लेना-धोकर रखना, दूकान से छोटी-छोटी चीजें लाना, उसकी पढ़ाई आदि कई ऐसे छोटे-छोटे काम हैं, जहाँ अभिभावक अत्यधिक प्यार और उत्साह के साथ करते हुए नजर आते हैं। आपका यह उत्साह और प्यार उन्हें आलसी, परावलंबी और कामचोर बना रहा है, यह खुली नज़रों से देखने कि आवश्यकता है। ऐसे में बच्चों के आत्मनिर्भर भविष्य की बात सोचना मीठा पागलपन ही है। मैं यह नहीं कहूँगा कि प्यार मत करो। प्यार ज़रूर कीजिए लेकिन कम से कम आपके प्यार से उसका भविष्य अपाहिज बनने मत दीजिए। वह बिना बैसाकी के अपना सारा काम करें इसके लिए व्यावहारिक प्यार और मार्गदर्शन अवश्य करें। उन्हें आत्मनिर्भर व्यक्तियों की कहानियाँ सुनाइए, पढ़ने दीजिए। यह बीज बचपन में बोने से बढ़ती उम्र में वे स्वयं आत्मनिर्भर बनेंगे। छोटे-छोटे काम स्वयं करने की प्रेरणा प्रदान करें। बच्चों को आत्मनिर्भर बनाएँ।
       सकारात्मकता वर्तमान समय की प्राथमिकता है। बच्चों की बढ़ती उम्र हँसी-ख़ुशी और सफल देखने के लिए हमारे परिवार में सकारात्मक, तनावरहित, खुला एवं उर्जावान वातावरण की बहुत आवश्यक है। इसके बगैर तो अच्छे संस्कार की परिकल्पना भी बेकार है। परिवार के बड़े, बुजुर्ग एवं अनुभवी होने के नाते हमारी प्रथम जिम्मेदारी है कि बच्चों को सकारात्मक, तनावरहित एवं खुला वातावरण प्रदान करें। पारिवारिक समस्याओं का उद्घाटन बच्चों के सामने कभी भी न किया करें। कितनी भी बड़ी पारिवारिक या अन्य समस्या पर परिवार में  सकारात्मक चर्चा हो। सकारात्मकता निडरता और आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। परीक्षा फल देखकर कमियों पर चर्चा करने के बजाए बड़प्पन दिखाकर उनका साहस बढाएँ। जो प्राप्त है वह तुम्हारी मेहनत का है, तुम और मेहनत करके और अच्छा कर सकते हो, यह आत्मविश्वास उसमें भरना आवश्यक है। ज़रूरत पड़ने पर उसकी सहायता के लिए तत्पर रहने की भी आवश्यकता है। इससे बच्चों में सकारात्मक सोच निर्माण होगी तथा आगे बढ़ने की उम्मीद जगेगी।
       आज बच्चे यांत्रिक बनते जा रहे हैं। जबतक उनमें प्रेरणा और प्रोत्साहन की पावर मिलती रहेगी तबतक वह कार्य करते रहेंगे। इसमें ढील मिलने पर परिस्थितियाँ जैसे-थी रह जाती हैं। अतः अभिभावकों को यह समझने की आवश्यकता है कि समय निकालकर बच्चों के साथ बातें करें, अध्ययन के बारे में पूछताछ करें, समस्याओं को समझे, उनके मित्र बनकर उनके साथ खेलें और घूमें भी। इनसे उनकी यांत्रिकता समाप्त हो जाएगी। बच्चों की क्षमता को परखे और उनकी क्षमताओं को अभिव्यक्ति देने हेतु मार्गदर्शन करें। अपनी इच्छाएँ और अभिलाषाएँ बच्चों पर न थोपी जाए। उन्हें उनकी क्षमा के अनुसार उभरने दीजिए; वरना आप की ऊँची आकांक्षाओं को पूरा करते-करते उनका जीवन बौना बन जाएगा। 
       आइए इस नववर्ष के हर्ष में अपने बच्चों के सर्वोत्तम अभिभावक बनकर परिवार में नया हर्ष भरने का प्रयास करें। अभिभावक होने के नाते इन बातों पर चिंतन अवश्य करें। प्रण करें कि हम अपने बच्चों के वो आतंरिक शिल्पकार बनेंगे जो बच्चों के भविष्य की सुंदरता को आकर दिला सकेंगे। आज नहीं तो फिर कभी नहीं। नववर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
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29 दिसंबर 2021
लेखक:  मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©® 
संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका,  सातारा (महाराष्ट्र)

संपर्क पता
● मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'  
संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका
भिरडाचीवाडी, डाक- भुईंज,  
तहसील- वाई, जिला- सातारा महाराष्ट्र
पिन- 415 515
मोबाइल: 9730491952
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
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नल की टोटी पर (कविता) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'


नल की टोटी पर

(कविता)

नल की टोटी पर 
चिड़िया ने दी गुहार
दो बूँद पानी की...
कि प्यास बुझा लूँ
तो पंख पसारूँ
सैर करूँ जहान की।
खुल गई टोटी
और खुल गई चोंच,
बार-बार उड़ी फिर मुड़ी
देखती रही खरोंच...
पर कहाँ मिलीं उसे
दो बूँद पानी की
पानी ने क्या ठाना था
लेनी जान नन्हीं की...
सब्र का बाँध अब टूट रहा
जी से नाता छूट रहा
साँसें भी अब फूल रही
आँखें भी अब मूँद रहीं
पानी, पानी की हर पुकार
हो गई थी अब बेकार...
पता चला के भूल हुई
गाँव छोड़ शहर चली
चकाचौंध के दिन थे चार
फिर घुमती रही लाचार
अब पछताए होत क्या
शहर जो चुग गया खेत
गाँव जबसे शहरी बना
कौन है यहाँ किसके हेत....
अब दाना है न पानी है
समाप्ति की बस कहानी है
पानी, पानी और पानी 
साँस फूली जो नन्हीं की
नर का नरक अब छूट गया
राह पकड़ ली सरग संसार की।
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दिनांक: 25 दिसंबर 2021
रचनाकार:  मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©® संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका,  सातारा (महाराष्ट्र)

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● मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'  
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■ देशवासियों के नाम हिंदी की पाती ■

  ■ देशवासियों के नाम हिंदी की पाती  ■ (पत्रलेखन) मेरे देशवासियों, सभी का अभिनंदन! सभी को अभिवादन!       आप सभी को मैं-  तू, तुम या आप कहूँ?...

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