
'बन दर्पण'
विधा: हाइकु
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13 अगस्त 2020
मच्छिंद्र भिसे ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
9730491952
-0-

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दर्पण सच्चा
खोल रंग दिखाए
झूठ न कहे।
(चाम की शक्ल)
🌹------------🙏---------🌹
झूठ न कहूँ
मन दर्प न दिखे
दर्पण देखे।
(अहंकारी शक्ल)
🌹------------🙏---------🌹
दर्पण देखूँ
खुशी रंग देखने
गम सहने।
(सुख-दुख दर्पण)
🌹------------🙏---------🌹
गम को सहूँ
दर्पण-सा निर्मल
चरित्र बुनूँ।
(चारित्र्यवान दर्पण)
🌹------------🙏---------🌹
चरित्र बुने
लौ-अंगारे लपटे
शक्ल न भूने।
(अमिट दर्पण)
🌹------------🙏---------🌹
शक्ल न भूने
सत आरसी साथ
शालीन बने।
(सच्चाई दर्पण)
🌹------------🙏---------🌹
शालीन बन
शक्ल पानी में देखे
नभ का तन।
(विशाल दर्पण)
🌹------------🙏---------🌹
नभ-सा तन
क्यों न होवे अपना?
बने दर्पण।
(आदर्श दर्पण)
🌹------------🙏---------🌹
बन दर्पण
बिखरूँ जगत में
होऊँ अर्पण।
(परहितार्थ दर्पण)
🌹------------🙏---------🌹
खोल रंग दिखाए
झूठ न कहे।
(चाम की शक्ल)
🌹------------🙏---------🌹
झूठ न कहूँ
मन दर्प न दिखे
दर्पण देखे।
(अहंकारी शक्ल)
🌹------------🙏---------🌹
दर्पण देखूँ
खुशी रंग देखने
गम सहने।
(सुख-दुख दर्पण)
🌹------------🙏---------🌹
गम को सहूँ
दर्पण-सा निर्मल
चरित्र बुनूँ।
(चारित्र्यवान दर्पण)
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चरित्र बुने
लौ-अंगारे लपटे
शक्ल न भूने।
(अमिट दर्पण)
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शक्ल न भूने
सत आरसी साथ
शालीन बने।
(सच्चाई दर्पण)
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शालीन बन
शक्ल पानी में देखे
नभ का तन।
(विशाल दर्पण)
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नभ-सा तन
क्यों न होवे अपना?
बने दर्पण।
(आदर्श दर्पण)
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बन दर्पण
बिखरूँ जगत में
होऊँ अर्पण।
(परहितार्थ दर्पण)
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मच्छिंद्र भिसे ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
9730491952
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