
'हे दर्पण!'
(कविता)
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12 अगस्त 2020
मच्छिंद्र भिसे ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
9730491952
(अध्यापक-कवि-संपादक)
पता: भिरडाचीवाडी (भुईंज), तह. वाई, जिला सातारा (महाराष्ट्र) 415515
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
-0-

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कहते हैं आईना सबको
सच्चाई शक्ल दिखाता है,
ग़लतफ़हमी है सारी हमारी
फरेबी सोच भला
कहाँ दिखा पाता है?
आईना अपना हो कर्म भला
सूरत सबमें छोड़ जाता है
नकाबपोश कर्म होते जगत में
बेनकाब दर्शन
कहाँ करा पाता है?
सूरत का भोला दिल का काला
कैसे-कैसे रंग आदमी भर जाता है
हर डगर पर रंग है बदले
असली चेहरा
कहाँ दिखा पाता है?
दर्पण से सपने लिए कोई
भला इन्सान बढ़ जाता है
दुराचार रोड़ा बन सपने तोड़े
परदा हटा उसका
कहाँ सच दिखा पाता है?
हे दर्पण! पर सच कहूँ...
जब तू इनको दिखाएगा
उस दिन तू भी मिट जाएगा।
जानता है दुनिया के सारे भेद
इसलिए इन्हें कहाँ दिखा पाता है?
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सच्चाई शक्ल दिखाता है,
ग़लतफ़हमी है सारी हमारी
फरेबी सोच भला
कहाँ दिखा पाता है?
आईना अपना हो कर्म भला
सूरत सबमें छोड़ जाता है
नकाबपोश कर्म होते जगत में
बेनकाब दर्शन
कहाँ करा पाता है?
सूरत का भोला दिल का काला
कैसे-कैसे रंग आदमी भर जाता है
हर डगर पर रंग है बदले
असली चेहरा
कहाँ दिखा पाता है?
दर्पण से सपने लिए कोई
भला इन्सान बढ़ जाता है
दुराचार रोड़ा बन सपने तोड़े
परदा हटा उसका
कहाँ सच दिखा पाता है?
हे दर्पण! पर सच कहूँ...
जब तू इनको दिखाएगा
उस दिन तू भी मिट जाएगा।
जानता है दुनिया के सारे भेद
इसलिए इन्हें कहाँ दिखा पाता है?
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मच्छिंद्र भिसे ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
9730491952
(अध्यापक-कवि-संपादक)
पता: भिरडाचीवाडी (भुईंज), तह. वाई, जिला सातारा (महाराष्ट्र) 415515
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
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