
●रंगमंच का जोकर●
(कविता)
इस रंगमंच की बात निराली
सदा रहती यहाँ हँसी-ठिठोली
मैं हूँ जोकर इस आँगन का
करता हूँ सबसे आँखमिचौली!
कभी तोतला बोलता हूँ,
कभी नाक मैं सिकुड़ता हूँ,
चाहे कुछ भी हो जाए यहाँ पर
कभी न उनसे मुँह मोड़ता हूँ
उनकी ख़ुशी में ढूँढू खुशहाली,
करता हूँ सबसे आँखमिचौली!
घंटी बजती यहाँ बार-बार
कभी मन उदास, कभी बहार
प्यार ही पाते सब यहाँ पर
बनते इक-दूजे का आधार
इस मंच की गूँज निराली,
करता हूँ सबसे आँखमिचौली!
जब मैं गाता वे भी गाते,
जब मैं हँसता वे भी हँसते
किसी दिन न देखा मुझको
देखकर मुझसे वे इठलाते
मैं जोकर हूँ उनका हमजोली
करता हूँ सबसे आँखमिचौली!
इस मंच का मैं अहम किरदार
मेरे बिन हैं सूना संसार
भेस ओढ़ा है ‘शिक्षक’ मैंने
लाने सबके जीवन में बहार
यहाँ पर हर दिन माने ईद-दिवाली
करता हूँ सबसे आँखमिचौली!
-०-
१७ जुलाई २०२०
मच्छिंद्र भिसे ©®
(अध्यापक-कवि-संपादक)
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सातारा (महाराष्ट्र) पिन- 415 515
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बहुत बढ़िया
ReplyDeleteभेस ओढा है"शिक्षक " का मैने
क्या बात है!