साथ ले जाएगा
(विधा: सजल)
माटी का हर पुतला माटी में एक दिन मिल जाएगा
सही बताओ बरख़ुरदार! साथ अपने क्या ले जाएगा।
धन-दौलत का रौब तुझे सच बता सुकून कितना पाया है
भागे उम्र भर पीछे इसके कौन तिनका साथ ले जाएगा।
पसीना बहा महल बनाया कितना इसमें जी पाया है
गीर जाएगा जमीं पर तन क्या एक ग़ज जमीं साथ ले जाएगा।
औरों के हालात पर रहम नहीं सबमें खुदगर्जी को पाया है
मिटाने तुझे वक्त दस्तक देगा क्या दुवाएँ साथ ले जाएगा।
अपना किसीको माना नहीं न सच्चे रिश्ते निभा पाया है
कंधा देने होंगे सभी क्या दिल उनके अपने साथ ले जाएगा।
मैं ही सबकुछ गाता रहा वक्त का खेल कभी देख पाया है
कल-प्रलय में डूब जाएगा इक दिन क्या मैं को साथ ले जाएगा।
वक्त है अभी सही राह चलने का मत देख किसने क्या कुछ पाया है
कर्म से नाम होते अमर हैं अभिमान से नाम अपना साथ ले जाएगा।
जीवन अपना है जन्म से मृत्यु अंतिम लक्ष्य कोई साध पाया है
जो साध लिया इस बीच वही अपने साथ तू ले जाएगा।
कहे मछिंदर सुन मेरे प्यारे मधुर वाणी ने सबकुछ पाया है
वाणी जब हो बंद अपनी औरों की वाणी अपने साथ ले जाएगा।
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23 जुलाई 2020
● मच्छिंद्र भिसे ● ©®
(अध्यापक-कवि-संपादक)
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