हिमालय है मुकुट इसका,
गंगा, यमुना, गोदा, कृष्णा,
मिटा रही है इसकी तृष्णा,
नहीं कोई दोष है अच्छा परिवेश,
ऐसा है मेरा भारत देश।
हजारों तपों की परंपरा इसे,
अपनाना चाहते देश-विदेश इसे,
मन में भरें सभी राग-अनुराग है,
प्यार से भरा है दिलकोश,
ऐसा है मेरा भारत देश।
एकता का है न्योता सबको यहाँ,
बंधुता का नाता हर एक से यहाँ,
धर्मनिरपेक्षता की है आस इसे,
नहीं है किसी के मन में द्वेष,
ऐसा है मेरा भारत देश।
आओ, चलो बनाए एक बसेरा,
हँसे-गाएँ, झूमें-नाचे, हो नया एक सवेरा,
सूरज खिलेगा भारत भूमि पर,
लेकर मन में प्यार का अनोखा संदेश,
ऐसा है मेरा प्यारा भारत देश।
गंगा, यमुना, गोदा, कृष्णा,
मिटा रही है इसकी तृष्णा,
नहीं कोई दोष है अच्छा परिवेश,
ऐसा है मेरा भारत देश।
हजारों तपों की परंपरा इसे,
अपनाना चाहते देश-विदेश इसे,
मन में भरें सभी राग-अनुराग है,
प्यार से भरा है दिलकोश,
ऐसा है मेरा भारत देश।
एकता का है न्योता सबको यहाँ,
बंधुता का नाता हर एक से यहाँ,
धर्मनिरपेक्षता की है आस इसे,
नहीं है किसी के मन में द्वेष,
ऐसा है मेरा भारत देश।
आओ, चलो बनाए एक बसेरा,
हँसे-गाएँ, झूमें-नाचे, हो नया एक सवेरा,
सूरज खिलेगा भारत भूमि पर,
लेकर मन में प्यार का अनोखा संदेश,
ऐसा है मेरा प्यारा भारत देश।
रचना - मच्छिंद्र भिसे, सातारा (महाराष्ट्र)
९७३०४९१९५२ / ९५४५८४००६३
राष्ट्रभक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण!
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
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