आओ मिलकर साथ चले, हमें आगे जाना हैं,
शान अपने तिरंगे की सारे जहाँ में बढ़ानी है।
खेत-खलिहान, बाग़-बगीचे, सबकी जान बचानी है,
पर्वत हो या नदी की धारा सबको अबाधित रखनी है।
जात-पात, धर्म बहुत, सबमें इक जान डालनी हैं,
हम भारतवासी सब एक हैं, आवाज जहाँ में गुँजानी है।
देश एक, भेस अनेक, भाषाएँ भी है बहुत पर,
भरें प्यार नस-नस में 'हिंदी', प्रीत इससे करनी हैं ।
किसान हो या जवान, दानत्व भाव दोनों भी रखते हैं,
छात्र हो या अध्यापक पीढ़ी की सीढ़ी बढ़ानी हैं।
या सम सबकुछ है मेरे देश में पर,
समय जान हथेली पर रखकर देश की लाज बचानी है।
शान अपने तिरंगे की सारे जहाँ में बढ़ानी है।
खेत-खलिहान, बाग़-बगीचे, सबकी जान बचानी है,
पर्वत हो या नदी की धारा सबको अबाधित रखनी है।
जात-पात, धर्म बहुत, सबमें इक जान डालनी हैं,
हम भारतवासी सब एक हैं, आवाज जहाँ में गुँजानी है।
देश एक, भेस अनेक, भाषाएँ भी है बहुत पर,
भरें प्यार नस-नस में 'हिंदी', प्रीत इससे करनी हैं ।
किसान हो या जवान, दानत्व भाव दोनों भी रखते हैं,
छात्र हो या अध्यापक पीढ़ी की सीढ़ी बढ़ानी हैं।
या सम सबकुछ है मेरे देश में पर,
समय जान हथेली पर रखकर देश की लाज बचानी है।
रचना - मच्छिंद्र भिसे, सातारा (महाराष्ट्र)
९७३०४९१९५२ / ९५४५८४००६३
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