(कविता)
वंदे आद्य गुरु माता- पिता नमन
होवे सार्थक-सफल सौ-सौ जनम!
गुरु बुने आपके सद्चरित्र जीवन
हित आपके करे नित नव सृजन!
गुरु सानिध्य जीवन जो अपावन
विकार परिमार्जन करें गुरुजन!
गुरु है आपके आप ही गुरु मन
शिष्य भविष्य माहीं करें चिंतन!
गुरु को आप कहिए मेरे सकल जन
मंगल से सुमंगल होवे आप ही मन!
नित खड़े होवे कैक अमंगल घन,
स्मरण करें गुरु के मिटे तम सघन!
गुरु न होता न्यारा करें अनेक भ्रमण,
जब भी भटके राह आइए गुरु शरण!
गुरु चरण के नित होवे स्मरण-वंदन,
मोह भरे संसार से होवे मुक्त-बंधन!
आत्म से आचरण करें गुरु सीखावन,
'मंजीते' सकल मन होवे संत-गुणीजन!
-०-
13 जुलाई 2022
रचनाकार: मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©®
संपादक : सृजन महोत्सव पत्रिका, सातारा (महाराष्ट्र)
Very Nice Sir Ji
ReplyDeleteबहुत बढिया सर जी
ReplyDeleteबहुत बढिया सर जी
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