
दाग
(कविता)
मिठास भरें आप जीवन में
कभी न लग जाए आग
जनम तो पाया पावन हमने
प्राण निकल जाए बेदाग।
कौन, कब, कहाँ मिल जाए
दो पल अपना दिल बहलाए
होंगे पल दो पल के साथी
एक-दूजे के ‘मंजीत’ बन जाए
नोंक-झोंक तो होती रहेगी
दिल पर अपने ले न दाग।
सबको अपना मीत बनाओ
गर्दिश में एक पहचान बनाओ
हरेक को अपना कहो रे प्यारे
मन मंदिर में उन्हें सजाओ
वे देवता और हम पूजक बनें
पीछे छूटे कुछ तो दाग।
कौन फिर से शुरू करेगा
बंद ताले का मुँह खोलेगा
छोटा है तू शीश नवा
हरेक तुझको आशीष देगा
साथ में लेकर क्या आया तू
इर्ष्या का तू कर ले दाग!
सूरज अपना भी ढलेगा
वापस फिर न कभी उगेगा
अंधियारा होगा आप जीवन में
फिर उजियारा कौन पीछे देगा
आज ही प्यार से भर ले मुट्ठी
सबके मन के धुल जाए दाग!
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०9 जून २०२१
मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत' ©®
(अध्यापक-कवि-संपादक)
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