मच्छिंद्र बापू भिसे 9730491952 / 9545840063

'छात्र मेरे ईश्वर, ज्ञान मेरी पुष्पमाला, अर्पण हो छात्र के अंतरमन में, यही हो जीवन का खेल निराला'- मच्छिंद्र बापू भिसे,भिरडाचीवाडी, पो. भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा ४१५५१५ : 9730491952 : 9545840063 - "आपका सहृदय स्वागत हैं।"

■ जीवन ही खेल ■ (कविता) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'

■ जीवन ही खेल ■
(कविता)
हार मिली तो रोते हो जी,
व्यर्थ समय क्यों खोते हो जी;
कभी तो जीत मिलेगी तुमको,
तुम वीर-धीर, जंग-ए-खिलाड़ी हो
बस! जी-जान खेलो जी।

सूरज भी ढलता हर शाम को,
फिर से उगता है नई भोर को;
अंधेरे से लड़े, उजाला लाए,
जीवन भी बस ऐसा सिखाए जी।

सपनों को पंख दो, उड़ान दो,
हर ठोकर से भी कुछ सीख लो;
जहाँ राह कठिन, वहाँ मंज़िल पास,
हौसलों के संग सब आसान है जी।

हार-जीत तो बस बहाने हैं,
जीवन के ये अनमोल ख़ज़ाने हैं;
बस चलते रहे, थम न जाए क़दम,
हर कोशिश देगा ऊँचाई का धरम जी।

लो उठो, बढ़ो, मुस्कुराओ जी,
हरपल उत्सव मनाओ जी;
खेल ही जीवन, जीवन ही खेल,
दिल को विजेता हो समझाओ जी।
-०-
27 मार्च 2025 शाम: 07:00 बजे
रचनाकार
● मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'● ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
सेवार्थ निवास : शिक्षण सेवक, जिला परिषद हिंदी वरिष्ठ प्राथमिक पाठशाला, विचारपुर, जिला गोंदिया (महाराष्ट्र)
9730491952
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उम्र 59 - 'झुकेगा नहीं साला' स्पेस गर्ल - सुनीता विलियम्स

 उम्र 59 - 'झुकेगा नहीं साला' स्पेस गर्ल - सुनीता विलियम्स

(आलेख)

     'सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष से लौटीं', अखबार में खबर पढ़ी और बहुत खुश हुईं क्योंकि अंतरिक्ष में 286 दिन बिताने के बाद भी उसके चेहरे पर अभी भी मुस्कान है! अब आप कहेंगे कि इसमें क्या आनंद है! वास्तव में, हमें भारतीय मूल की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री होने पर गर्व है, और हमें होना भी चाहिए। लेकिन इसके अलावा, मुझे लगता है कि उसे एक इंसान के रूप में एक अलग नजरिए से देखना उचित होगा।

     जब मैंने ये खबर पढ़ी तो मेरे मन में एक अलग तरह की मुस्कान आई और मेरे मन में ये विचार आया कि जो लोग 58 साल की उम्र में रिटायर होना चाह रहे हैं; शायद एक तरफ रिटायरमेंट का इंतजार कर रहे लोग और दूसरी तरफ 59 वर्षीय सुनीता विलियम्स, जो 58 वर्ष की उम्र में सभी उम्र, लिंग, नस्ल, जाति आदि को पीछे छोड़कर, पृथ्वी, रिश्तेदारों और अपने लोगों को अंतरिक्ष में वैज्ञानिक प्रयोग करने के लिए छोड़ कर, एक जीवन-घाती यात्रा पर निकल पड़ती हैं और एक अलग ब्रह्मांड में 286 दिन बिताने के बाद उसी उत्साह और खुशी के साथ वापस लौटती हैं। इन दोनों के बीच क्या अंतर है? एक बात तो तय है, सेवानिवृत्ति और यात्रा के इस आयु में, लेकिन कितना मात्र शून्य!

     लेकिन अगर आप इसे वैचारिक और मानसिक स्तर पर देखें तो.....! फर्क ही फर्क नजर आएगा। जो लोग आधुनिक युग में जीते हैं, जो लोग आज की अनियंत्रित जीवनशैली में जीते हैं, जो कहते हैं, "मैं झुकूँगा नहीं", वे 58 वर्ष की आयु में रिटायर हो जाते हैं और कहते हैं, "अब मेरा काम हो गया, अब कोई और ये जिम्मेदारी ले ले", और वे आराम करते हैं। मेरा प्रश्न यह है कि बुद्धिमान और विद्वान लोग यह क्यों नहीं समझ पाते कि यही शांति धीरे-धीरे हमें मृत्यु और जीवन के अंत की ओर ले जाती है।

     आइए एक क्षण के लिए सुनीता विलियम्स को एक अंतरिक्ष यात्री के रूप में भूलकर एक व्यक्ति के रूप में उनके बारे में सोचें। यद्यपि प्रत्येक मनुष्य की कार्यक्षमता, स्वास्थ्य, बुद्धि और कई अन्य बातों में अंतर होता है, फिर भी जन्म, आयु और मृत्यु सभी मनुष्यों के लिए एक समान है। तो फिर हम अपनी क्रयशक्ति में अंतर क्यों महसूस करते हैं? कुछ लोग लगातार काम करते रहते हैं, जबकि अन्य कुछ अंतराल के बाद काम बंद कर देते हैं। क्या इसे रोकने से कष्ट नहीं होता? हर व्यक्ति जो सबको यह उपदेश देता है कि "अगर तुम रुक गए तो सब ख़त्म", एक निश्चित बिंदु पर खुद रुक जाता है और साबित करता है कि वह कितना बड़ा झूठा है। जो अपनी आँखों में भी नहीं देख सकते, जिनकी विचारशीलता कम है, उन्हें क्या फर्क पड़ता है, उन्हें हम क्या कहें...बेशर्...!

     वैसे भी हर व्यक्ति अपने रास्ते पर निकलने से पहले यह क्यों नहीं सोचता कि ‘जिंदगी का यह रास्ता यूँ ही निकल जाता है।’ इसमें मोड़ आते हैं; लेकिन अंतिम स्टेशन कोई नहीं जानता। फिर, जब कार पंचर हो जाती है, तो हम उसे ठीक कर देते हैं और उसे सड़ने देने के बजाय वापस सड़क पर ले आते हैं, लेकिन वास्तविक जीवन में हम एक ऐसा स्पीड ब्रेकर लगा देते हैं कि लगता है कि सब कुछ खत्म हो गया। वास्तव में, जिस क्षण आप रुकने के बारे में सोचते हैं; आपकी मानसिक, बौद्धिक और शारीरिक आयु और जीवन समाप्त हो जाता है, और आपके पास जीने के लिए केवल नाम ही बचता है। फिर हमें बस इंतजार करना होगा और देखते रहना होगा, जीवन के समाप्त होने का इंतजार करना होगा। इसे समझने के लिए उम्र होनी चाहिए क्या?

      मुझे लगता है कि हमारी मानसिकता ही इसका कारण हो सकती है। एक मजबूत दिमागवाला व्यक्ति, चाहे वह कितना भी बूढ़ा हो जाए, जवान रहता है और जीवन के हर पल में फलता-फूलता रहता है। हर किसी की शारीरिक आयु बढ़ती है, लेकिन मजबूत दिमागवाले लोग अपनी मानसिक आयु में हमेशा जवान बने रहते हैं। उनका जीवन सदैव आनंद और संतोष से भरा रहता है और यह उनकी उपस्थिति, उनके चेहरे और उनकी जीवनशैली में झलकता है। यदि हम इस तरह जीवन जी सकें तो हमें निश्चित रूप से जीने में आनंद मिलेगा।

     आज के अखबार में सुनीता विलियम्स की फोटो देखने के बाद उनके चेहरे पर जो युवापन है वह उनकी उम्र से मेल नहीं खाएगा। शायद वह 59 साल की उम्र भी उसकी युवा मुस्कान से ईर्ष्या कर रही थी। क्या यह सच नहीं है! 

     मैं अपने हर दोस्त को इतना जवान देखना चाहता हूँ। क्या आप भी हमेशा जवान बने रहना चाहेंगे? यदि हाँ, तो आइए, हमने जो कार्य हाथ में लिया है, उसे हम अपनी अंतिम साँस तक आत्मविश्वास और मानसिक दृढ़ता के साथ पूरा करें। निश्चय ही, जब हम भी अपने जीवन और चेहरे पर खुशियों की चिरयुवा अवस्था देखेंगे, तो हम विश्वास के साथ कह सकेंगे - 'झुकेगा नहीं साला'।

     59 वर्ष की उम्र में सुनीता विलियम्स के सफल अभियान से एक बात सीखी जा सकती है कि सक्रीय कार्यवानता की कोई उम्र नहीं होती। सुनीता विलियम का अभियान यह दर्शाता है कि सीखने के लिए कोई आयु सीमा नहीं होती, वैसे ही काम करने के लिए कोई आयु सीमा नहीं होती। हमें यह दृष्टिकोण अपनाना चाहिए कि सेवानिवृत्ति की कोई उम्र नहीं होती। हम निश्चित रूप से विचार और विश्वास का एक बंधन बना सकते हैं कि हम कभी सेवानिवृत्त नहीं होंगे। हम अवश्य प्रयास करेंगे!

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20250320

लेखन और संपादन ©®

श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'

सेवा क्षेत्र: विचारपुर, गोंदिया (महाराष्ट्र)

मूल निवास: भुईंज, सतारा (महाराष्ट्र)

मो. ९७३०४९१९५२


● मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'● ©®
शिक्षण सेवक
जिला परिषद हिंदी वरिष्ठ प्राथमिक पाठशाला, विचारपुर, जिला गोंदिया (महाराष्ट्र)
9730491952
सातारा (महाराष्ट्र)

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(कविता)
कभी अंतस्थ गहराई में
गोते लगाता है मन;
और होता है चिंतन-मंथन
कि कौन हूँ मैं, और क्यों हूँ?
जवाब ढूँढ़ता रहता और
खाली ही लौट आता;
भाग-दौड़ भरी जिंदगी में,
उठा बोझ और थैला लिए
निकला हूँ फिर से
किसी और की खोज में!
और क्या! वे 'दो दाने' ही तो हैं;
बस! जिलाते है;
पल-पल मारने के लिए!
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29 जनवरी 2025 सुबह: ०8.32 बजे
रचनाकार
● मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'● ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
सेवार्थ निवास : शिक्षण सेवक, जिला परिषद हिंदी वरिष्ठ प्राथमिक पाठशाला, विचारपुर, जिला गोंदिया (महाराष्ट्र)
9730491952
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■ जीवन ही खेल ■ (कविता) - मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'

■ जीवन ही खेल ■ (कविता) हार मिली तो रोते हो जी, व्यर्थ समय क्यों खोते हो जी; कभी तो जीत मिलेगी तुमको, तुम वीर-धीर, जंग-ए-खिलाड़ी हो बस! जी-ज...

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