
*अधूरेपन का अहसास*
(विधा: मुक्तक कविता)
एक दिन बेजान झोंपड़ी में
बूढ़े माँ-बाप को बेसहारा देखा,
लगा पल के लिए
कलियुग ने भी सतयुग भूलकर
खींच दी अधूरेपन की अनमीट रेखा।
जिस अयोध्या-सी मिट्टी में खेला
डाली-पेड़, बालसखा संग
किया करता था रामलीला,
ढल गया वक्त छूटे साथी,
भूल गया सबकुछ पीछे छोड़ा न बाकी
अपने अस्तित्व की खोज में
चल पड़े राम ने कभी मुड़कर न देखा
और खींचता रहा, अधूरेपन की अनमीट रेखा।
क्या हुआ था हाल दशरथ का
आज का राम भूल गया,
अपने स्वार्थ के लिए वह भी
शहरी वनवास को चला गया,
रंग देखे शहरी, शहर में ही रहा रुका,
छोड़ अपने दशरथ, कौशल्या, भरत को
खींच दी अधूरेपन की अनमीट रेखा।
झोंपड़ी में दशरथ अपने राम की
सूखे होठों से रट लगाए बार-बार,
लौटेगा राम हमारा, सब करते रहे इंतज़ार,
बस! एक झलक दिखा देना राम
इसी चाहत में धरा पर रुका है अवसान
जब भी ऐसा खत पाता, राम करता अनदेखा
और बनाता रहा गर्द अधूरेपन की रेखा।
राम की बेरुखी पर वक्त भी सहम गया
लौट आने अयोध्या, राम को बाध्य किया,
देख सूना आँगन और सूखे पेड़ को
पिता को मिलने दौड़ा चला गया
पछतावा भी था परवान चढ़ा
शहरी छत टूट गए, चाहता अपनों का साया।
स्वार्थी आहट पाकर यमराज भी न रुका
नजरें भिड़ीं जब एक-दुजे की, तब
हमेशा के लिए खींच गई अधूरेपन की रेखा।
-०-
१० जुलाई २०२०
“चाहे कितनी ही ऊँचाई को हम क्यों न छू ले, बुनियाद और रिश्तों की अहमियत बनी रहे।”
***
रचनाकार
*मच्छिंद्र भिसे*©®
अध्यापक-कवि-संपादक
सातारा (महाराष्ट्र)
मो. 9730491952
🌹💐🙏🌹💐🙏
उत्कृष्ट रचना।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई
उत्तम विचार
ReplyDeleteबहुत बढिया
ReplyDeleteबहुत बढिया
ReplyDeleteवर्तमान को व्यक्त करती सुंदर रचना।कविता में आये अनमिट शब्द से आपका आशय "नहीं मिटने वाला"से है तो कृपया उसे अनमिट के स्थान पर अमिट कर लीजिए
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