कुहरा छू जाने से,
तरोताजगी जगने लगी,
सूरज की किरणों से,
ओंस भी खिलने लगी,
रोशनदान से सुबह की,
महक बिखरने लगी,
गंधित-सुगंधित मन को
मुस्कराते सुबह जगाने लगी।
सूरज की पहली किरण को,
देख कलियाँ मुस्कराई,
खिली-खिली वसुंधरा देख,
कोयल ने है प्रहरियाँ गाईं,
हो गई सुमधुर-पल्लवित,
प्रभात प्यार ले आई,
जीवन गीत-संगीत से महकाने,
जीवन गान प्रभाती आई।
शीत सुबह में बहता पवन,
देता रहा प्यार की पहचान,
लेकर आया साथ में,
नई सुबह का मेहमान,
सूरज चाचू ने आते ही,
स्वीकार किया सबका प्रणाम,
दिए सौ-सौ आशिष सबको,
हो जीवन में खुशियों का नया विहान।
चिडियों ने आँगन में आ,
मचाया कितना शोर,
मीठी-मीठी बोली से,
बतिया रही हो गई है भोर,
निकालो रजाई देखो आँगन में,
सुबह ने है खुशियाँ लाईं,
चीं-चीं चिडिया रानी,
करने स्वागत आपके लिए है आईं।
रचना - मच्छिंद्र भिसे, सातारा (महाराष्ट्र)
९७३०४९१९५२ / ९५४५८४००६३
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