
■ जमाना कहता रहेगा ■
(गजल)
वक्त का क्या है यारों यह तो आता-जाता रहेगा
हम जैसे थे, है और रहेंगे जमाना कहता रहेगा।
वक्त के साथ कुछ दिल में समाए कुछ छूट गए
छूटा समा भी हमें दिल से याद करता रहेगा।
किसी ने कहा वक्त के साथ यह भी ढल जाएगा
सच है मगर अपनी यादों का कारवाँ चलता रहेगा।
वक्त ने पूछा मुझे तुझे और कितना वक्त चाहिए
तेरे पास है ही कितना झूठे जो मुझे बाँटता रहेगा।
चल 'मंजीते' वक्त को अपना गुलाम बना देते हैं
बदल दे उसे कबतक उसकी गुलामी करता रहेगा।
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२८ सितंबर २०२४ रात ११.२९ बजे
रचनाकार
● मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'● ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
सेवार्थ निवास : शिक्षण सेवक, जिला परिषद हिंदी वरिष्ठ प्राथमिक पाठशाला, विचारपुर, जिला गोंदिया (महाराष्ट्र)
9730491952
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