मुझे इतना खूश देखकर एक दिन वक्त ने आकर पूछा, 'तुम कहाँ खो जाते हो। जरा मुझे याद तो किया करो, जरा लिहाज किया करो। मुझे तो भूल ही गए हो।'
हमने विनम्रता से कहा, 'व्यस्तता के कारण तुम्हारी तरफ ही नहीं खुद की तरफ भी ध्यान देने के लिए भी फुरसत नहीं है।'
उस दिन बेचारा नाराज होकर चला गया। दो-चार दिन बाद फिर आया, कहा, "देख, तुझे मुझे हर हाल में याद करना ही होगा, वरना अंजाम बुरा होगा।'
हमने कहा, 'सुनो, जब-जब मैं तुझे याद करता रहा, तूने मुझे बहुत परेशान किया। जिंदगी में न जाने कितने ही तूफान तूने खड़े किए। कभी हारा, खड़ा हुआ, गिरा-सँभाला। मैं तुझपर भरोसा करता था कि तू मेरी जिंदगी बदल देगा, लेकिन तूने भरोसा तोड़ दिया। तूने मुझे निराश किया। अब मुझे तेरी आवश्यकता नहीं है। तू जा।'
यह सुनकर वक्त नाराज होकर फिर चला जा ही रहा था कि वापस मूड़ा, उसके मन में जिज्ञासा थी। उसने कहा, 'आखरी एक सवाल का जवाब दे देना। आखिर तूने मुझे खुद से अलग कैसे किया?'
हमने कहा, 'आसान है, पहले मैं तेरे पीछे भागता था, अब तू मेरे पीछे भाग रहा है। मतलब अब मैं आगे हूँ, मुझे पीछे मुड़ने और भागने की आवश्यकता खतम हुईं है। तबसे, जबसे मैंने खुद के पीछे भागना शुरु किया है, अब मुझे मेरा पता मिल गया है, मैं मुझे मिला हूँ। खुद को पहचान गया हूँ, अब मुझे औरों की परख हो गई। माफ करना, तू नाराज मत होना।'
यह सुन वक्त सिर झुकाए सोचते हुए जा रहा था, शायद उसे अपने अस्तित्व की तलाश थी। तबसे लेकर आज तक मैं खुश हूँ क्योंकि जैसा भी हो तबसे वक्त मेरे पास आता ही नहीं।
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२८ सितंबर २०२४ रात ११ बजकर ५५मिनट पर लिखकर पूर्ण हुई।
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रचनाकार
● मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'● ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
सेवार्थ निवास : शिक्षण सेवक, जिला परिषद हिंदी वरिष्ठ प्राथमिक पाठशाला, विचारपुर, जिला गोंदिया (महाराष्ट्र)
9730491952