
मरहम लेप दें...
(कविता)
धरती आज डोल रही है
आकर प्रभु इसे थाम लें
तेरा ही अब एक भरोसा
कुछ तो मरहम लेप दें।
कोहराम मचा घना यहाँ
मानवता लगी दाँव पर
मनुज-मनुज से टूट रहा
आँखें लगी तेरी आस पर
बुने रिश्ते जो बिखर रहे हैं
कुछ तो जखम सिल दें...
घर के घर तबाह आज
बेकाम हो रहे हर सामान
धन-दौलत भी न आए काम
कैसे बचाए जन के प्राण
राम-रहीम चिंतित यहाँ
दामन हौसलें से भर दें...
विपदा बड़ी आन पड़ी है
जन-मन भय से रो रहे हैं
पास किसी के जाना न चाहे
दोस्त में दुश्मन देख रहे हैं
ख़त्म कर यह विनाशी खेल
कुछ तो खेल, ऐसा खेल दें...
-०-
● मच्छिंद्र बापू भिसे 'मंजीत'●
सातारा (महाराष्ट्र)
संपादक
सृजन महोत्सव पत्रिका
मोबाइल: 9730491952
ईमेल: machhindra.3585@gmail.com
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Very nice creation lots of congratulations
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